पीलिया यानी जॉन्डिस के बारे में हर जानकारी यहां मिलेगी

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परिचय

पीलिया शब्द का उपयोग त्वचा के पीलेपन और आंखों की सफ़ेदी का बताने के लिए किया जाता है। इसका कारण शरीर के ऊतकों व रक्त में एक पदार्थ का निर्माण होता है, जिसे बिलीरूबिन कहा जाता है। कोई भी स्थिति, जिनके कारण बिलीरूबिन की गतिविधियां रक्त से लीवर और शरीर से बाहर बाधित होती है, के कारण पीलिया होता है। बिलीरूबिन पीले रंग का पिगमैंट है, जो कि लीवर में मृत लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने (आरबीसी) से बनता है। इसके अलावा कई अन्य तरीके है, जिनके माध्यम से बिलीरूबिन बन सकता है। 

लाल रक्त कोशिकाएं किसी कारणवश अपनी सामान्य प्रक्रिया से पहले ही टूटने लगती है, तो तिल्ली में लाल रक्त कोशिकाओं का भार बढ़ जाता है तथा अत्यधिक बिलिरूबिन पैदा होता है, जिसे लीवर संभाल नहीं पाता है। अपरिष्कृत बिलिरूबिन खून में जमा हो जाता है तथा इसके परिणामस्वरुप अंत में त्वचा व आंखों में पीलापन दिखाई देता है। इस स्थिति को हीमोलाइटिक एनीमिया कहा जाता है। यह स्थिति कई बार आनुवांशिक हो सकती है। हीमोलाइटिक एनीमिया कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण भी हो सकता है।

लीवर की कोशिकाओं में कभी-कभी समस्या होती है। यदि बिलीरूबिन की दोषपूर्ण तीव्रता, प्रसंस्करण या उत्सर्जन होता है, तो उसके परिणामस्वरुप खून में बिलीरूबिन इकट्ठा  हो जाता है। नवजात शिशुओं में अस्थायी पीलिया बिलीरूबिन की प्रक्रिया के लिए आवश्यक परिपक्व एंजाइमों की कमी के कारण हो सकता हैं। अल्कोहल वयस्कों में लीवर की कोशिकाओं को क्षति पहुँचाने का बेहद सामान्य कारण है। अन्य टॉक्सिन व दवाएं भी लीवर को तीव्र क्षति पहुंचा सकती है।

पित्त वाहिनी में रुकावट के परिणामस्वरुप बिलीरूबिन बढ़ जाता है। यह मूत्र में फैल सकता है तथा इसके कारण मूत्र का रंग गहरा पीला हो जाता है। पित्त वाहिनी में रुकावट पित्त की पथरी का सबसे सामान्य कारण है। 

 

लक्षण

पीलिया के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

  • आंख व त्वचा के रंग का पीला पड़ना। 
  • स्टूल (मल) का रंग पीला होना। 
  • गहरे पीले रंग का मूत्र आना।

 

 

कारण

पीलिया को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, जो कि इस पर निर्भर करता है कि पैथोलाजी शारीरिक तंत्र के किस हिस्से को प्रभावित करती है। पीलिया की तीन श्रेणियां होती हैं:

 

प्री-हिपेटिक पीलिया: प्री-हिपेटिक पीलिया हिमोलाईसिस की वृद्धि दर (लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने) के कारण होता है। हिमोलाईसिस के कारणों में निम्न शामिल हैं:

  • मलेरिया। 
  • सिकल सेल एनीमिया। 
  • थैलसीमिया। 
  • गिल्बर्ट सिंड्रोम। 

हेपैटोसेलुलर पीलिया: हेपैटो सेलुलर पीलिया लीवर में किसी भी तरह के संक्रमण के कारण हो सकता है। यह संक्रमण या हानिकारक पदार्थों जैसे कि अल्कोहल के सेवन के कारण होता है, जिसमें बिलीरूबिन बनने की प्रक्रिया में लीवर की क्षमता बाधित हो जाती है। 

 

पोस्ट-हिपेटिक पीलिया: पोस्ट-हिपेटिक पीलिया: इसे प्रतिरोधी (ओब्सिट्रकटिव) पीलिया भी कहा जाता है। यह पित्त प्रणाली में पित्त की निकासी में रुकावट के कारण होता है। इसका सबसे सामान्य कारण पित्त वाहिनी में पित्त की पथरी या अग्नाशय का कैंसर है। कुछ अन्य स्थितियों के कारण भी पीलिया हो सकता है, जैसे कि:

लीवर की एक्यूट सूजन- लीवर की क्षमता बिलीरूबिन के स्राव या एकत्र होने से ख़राब हो सकती है, जिसके परिणामस्वरुप बिलीरूबिन बढ़ जाता है।

पित्त वाहिनी की सूजन- पित्त स्राव रूकने और बिलीरूबिन निकलने के कारण पीलिया हो सकता है। 

पित्त वाहिनी की रुकावट (ओब्सिट्रकशन)- लीवर को बिलीरूबिन हटाने से रोकती है, जिसके परिणामस्वरुप हाईपर बिलीरूबिनमिया होता है।

हीमोलिटिक एनीमिया- जब अधिक मात्रा में एरिथ्रोसाइट्स टूटता हैं, तब बिलिरूबिन का उत्पादन बढ़ जाता है। 

गिल्बर्ट सिंड्रोम- यह वंशानुगत स्थिति है, जिसमें एंजाइमों की कमी (बायोमॉलिक्युलर पदार्थों के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित करती है) पित्त के उत्सर्जन की प्रक्रिया को रोकती है।

पित्तस्थिरता- वह स्थिति हैं, जिसमें लीवर से पित्त का प्रवाह बाधित होता है। संयुग्मित बिलीरूबिन से युक्त पित्त उत्सर्जित होने के बजाय लीवर में रहता है।

 

निदान

मूत्र परीक्षण: इसका उपयोग यूरोबायलिनोजेन कहे जाने वाले पदार्थ के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। पाचन तंत्र के अंदर जब बैक्टीरिया बिलिरूबिन को तोड़ते हैं तब यूरोबायलिनोजेन पैदा होता है।  

रक्त परीक्षण: रक्त परीक्षण में एंजाइमों के रक्त स्तर मुख्य रूप से लीवर से पाये जाने वाले जैसे कि एमिनोट्रांसफैरसिस (एएलटी,एएसटी), और एलक्लाइन फॉस्फेट (एएलपी), बिलीरुबिन (जो पीलिया का कारण है) तथा प्रोटीन के स्तर, विशेषत: कुल प्रोटीन और एल्बुमिन में शामिल है।

लीवर प्रक्रिया के लिए अन्य प्राथमिक प्रयोगशाला परीक्षणों में गामा ग्ल्यूटामिल ट्रांसपेपटिज़ (जीजीटी) और प्रोथ्रोम्बिन (पीटी) शामिल है।

एनएचपी स्वास्थ्य की बेहतर समझ के लिए सांकेतिक जानकारी प्रदान करता है। किसी भी तरह के निदान व उपचार के प्रयोजन के लिए चिकित्सक से परामर्श करें।

 

प्रबंधन

पीलिया के लिए कोई उपचार नहीं है, लेकिन रोग को लक्षण और कारण के प्रबंधन द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है।

प्री-हिपेटिक पीलिया: प्री-हिपेटिक पीलिया के उपचार का लक्ष्य लाल रक्त कोशिकाओं के तेज़ी से टूटने को रोकना है, जो कि रक्त में बढ़ने वाले बिलीरूबिन के स्तर में वृद्धि के कारण होता है।

संक्रमण की स्थिति जैसे कि मलेरिया संक्रमण के उपचार में दवा के उपयोग की सामान्यत: सलाह दी जाती है। आनुवंशिक रक्त विकार जैसे कि सिकल सेल एनीमिया या थैलेसीमिया, रक्ताधान में लाल रक्त कोशिकाओं चढ़ाई जा सकती है।

गिल्बर्ट सिंड्रोम में सामान्यत: उपचार की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि पीलिया विशेषत: गंभीर स्थिति के साथ जुड़ा नहीं है तथा यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा नहीं है।

इंट्रा-हिपेटिक पीलिया: इंट्रा-हिपेटिक पीलिया की स्थिति में लीवर की क्षति के लिए थोड़ा उपचार किया जा सकता है, हालांकि लीवर समय के साथ स्वयं ठीक हो जाता हैं, इसलिए, उपचार का उद्देश्य आगे होने वाली लीवर की क्षति को रोकना होता है।

लीवर की क्षति का कारण संक्रमण जैसे कि वायरल हेपेटाइटिस या ग्रंथियों का बुख़ार है। एंटी-वायरल दवाओं का उपयोग आगे की क्षति को रोकने में मदद के लिए किया जा सकता है। यदि क्षति का कारण अल्कोहल या रसायन जैसे हानिकारक पदार्थ है, तो भविष्य में ऐसे किसी भी तरह के पदार्थों के ज़ोखिम से बचने की सलाह दी जाती है। 

लीवर की बीमारी के गंभीर मामलों में  लीवर प्रत्यारोपण दूसरा विकल्प हो सकता है। 

पोस्ट- हेपाटिक पीलिया: पोस्ट हेपाटिक पीलिया की अधिकत्तर स्थितियों में पित्ताशय प्रणाली की रुकावट को दूर करने के लिए सर्जरी की सलाह दी जाती है। सर्जरी के दौरान निम्नलिखित को हटाना आवश्यक हो सकता है:

पित्ताशय की थैली। 

पित्ताशय प्रणाली का भाग। 

आगे होने वाली रुकावटों को रोकने के लिए अग्न्याशय के किसी भाग को अलग करना। 

एनएचपी स्वास्थ्य की बेहतर समझ के लिए सांकेतिक जानकारी प्रदान करता है। किसी भी तरह के निदान और उपचार के प्रयोजन के लिए चिकित्सक से परामर्श करें।

 

रोकथाम

पीलिया के सभी मामलों को रोकना संभव नहीं है, क्योंकि यह स्थितियां या परिस्थितियां विस्तृत श्रृंखला के कारण हो सकती है।

 

हालाँकि, कुछ सावधानियों को अपनाकर पीलिया के विकास के ख़तरे को कम किया जा सकता है। इनमें निम्न शामिल हैं:

  • यह सलाह दी जाती है कि अल्कोहल का सेवन अधिक मात्रा में न करें। 
  • ऊंचाई के अनुसार स्वस्थ वज़न को बनाए रखें।
  • हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी के खिलाफ़ टीकाकरण अवश्य कराएँ। 
  • उच्च ज़ोखिम व्यवहार जैसे कि नसों में नशीली दवाएं लेने या असुरक्षित संभोग से बचें। 
  • अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए संभावित दूषित आहार/पानी से बचें। 
  • हीमोलाइसिस और लीवर को प्रत्यक्ष क्षति पहुँचाने वाली दवाओं और विषाक्त पदार्थों से बचें। 

 

(नेशनल हेल्‍थ पोर्टल से साभार)

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